Nabi ﷺ Ka Bachpan || Noore hadees

Complete Story Of Prophet Mohammad ﷺ from Childhood to Youth || Nabi ﷺ Ka Bachpan || Noore hadees

Nabi ﷺ Ka Bachpan || Noore hadees
Nabi ﷺ Ka Bachpan || Noore hadees


 बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम अस्सलाम वालेकुम प्यार दोस्तों दोस्तों आज के इस वीडियो में हम आपको अल्लाह के प्यार नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम का बचपन से लेकर जवानी तक का पूरा वाक्य बताने वाले हैं जिसको सुनकर आप सभी का दिल खुश हो जाएगा और ईमान भी ताज़ा होगा आप इसको आखिर तक जरूर देखें तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं दोस्तों सबसे पहले अरब में कबीलाई

संस्कृति का जाहीलाना रिवाज था यानी हर कबीले का अपना अपना धर्म था अपना अपना मजहब था और उन सब के देवी देवता भी अलग-अलग ही थे कोई मूर्ति की पूजा करता था तो कोई आग की यहूदियों और ईसाइयों के कबीले थे और वह भी मजहब बिगाड़ के शिकार थे उस वक्त लोग अल्लाह को छोड़कर इंसानों और पेड़ पहाड़ों की पूजा करने में लगे हुए थे पूरे अरब में हिंसा का बोल बाला था औरतें और बच्चे महफूज नहीं थे लोगों की जान माल की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी इस अंधेरे दोर से दुनिया को बाहर निकालने के लिए अल्लाह ने हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को अपना

पैगंबर बना कर इस दुनिया में भेजा दोस्तों हुजूर सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम बारा रबीउल अव्वल 571 ईस्वी को पीर के दिन और सुबह सादिक के वक्त मक्का में पैदा हुए आपके पैदा होते ही आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब आपको गोद में उठाकर काबा शरीफ में ले गए आपके लिए दुआएं की और आपका नाम रखा मोहम्मद पोते की पैदाइश की खुशी में आपके दादा ने सातवें दिन अपने कबीले के लोगों को दावत दी लोगों ने आ कर आपके दादा से पूछा की आपने इनका नाम मोहम्मद क्यों रखा है तो आपके दादा ने जवाब दिया की मैं चाहता हूं की मेरे पोते पर इस्लाम का असर पड़े और आपकी वालिदा सैयद अमिना ने आपका

 नाम अहमद रखा दोस्तों पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम जब पैदा हुए तो आपकी खतना पहले से ही की हुई थी आपकी आंखों में सुरमा भी लगा हुआ था और आपका तमाम बदन पाकीजा था जब आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब ने अपने पोते को खतना सुधा और नाप काटा हुआ पाया तो वो बहुत ज्यादा खुश हुए और फरमाया की मेरा पोता बड़ी निराली और बड़ी शान वाला होगा और यही नहीं जब आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम पैदा हुए तो आपकी मुट्ठी मुबारक भी बंद थी मगर शहादत वाली उंगली आसमान की तरफ उठी हुई थी और ऐसा लग रहा था जैसे खुदा की वहदनियत

 का इकरार कर रही है दोस्तों जब हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम पैदा हुए तो उस वक्त अरब में यह रिवाज हुआ करता था की शहर के बड़े लोग अपने बच्चों को दूध पिलवाने के लिए और पलने बढ़ाने के लिए गांव देहातों में भेज दिया करते थे ताकि गांव देहात की खुली हवा मेंं रहकर उनका बच्चा खूब सेहत मांद बने क्योंकि दोस्तों उस जमाने में गांव देहात का मौसम शेहरों के मुकाबले ज्यादा साफ सुथरा और ज्यादा अच्छा हुआ करता था इसी वजह से गांव देहात में पहले बच्चे ज्यादा सेहतमंद और मोटे ताजा हुआ करते थे दोस्तों इसी रिवाज के मुताबिक पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु

 ताला अलेही वसल्लम को भी मक्का से दूर टाइप के करीब एक इलाका है जिसको बनी साद कबीला कहा जाता है वहां ले जय गया और एक दाई को सोप दिया गया जिसका नाम दाई हलीमा था और वह बनी साद काबिले से थी इसीलिए उनको हलीमा सादिया भी कहा जाता है दोस्तों इसके दो बड़े मकसद थे तारीख की किताबें में लिखे गए हैं पहले मकसद तो ये था की उस वक्त लोग शहर की आबो हवा से हटकर देहात की अच्छी और ताजी हवा में अपने बच्चों को भेजते थे ताकि वो अच्छे सेहतमंद हो जाए और इसी के साथ दूसरा मकसद ये था की वो उनके साथ रहकर अच्छी तरह से अरबी जुबान भी सीख ले इन दोनों मकसद के

 लिए शहर के लोग अपने बच्चों को पलने बढ़ने के लिए गांव देहातों में भेजा करते थे दोस्तों दाई हलीमा बहुत गरीब घराने से थी इसीलिए उन्होंने आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की परवरिश का बीड़ा उठाया यह सोचकर की 2 साल इनकी परवरिश करूंगी तो उसके बदले में मुझे कुछ माल मिल जाएगा ताकि उससे उनकी जिंदगी का गुर्जर बसर अच्छी तरह से हो सके दोस्तों जैसे ही हजरत अमिना ने अपने प्यारे बेटे हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को दाई हलीमा के हवाले किया और जो ही दाई हलीमा ने आप हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को अपनी गोद में उठाया तो उस वक्त से दाई हलीमा की जिंदगी में

 रहमत और बरकत होना शुरू हो गई दोस्तों उस वक्त अरब में ये रिवाज था की बच्चे की परवरिश का जिम्मा 2 साल का हुआ करता था और हर 6 महीने के बाद बच्चे को उसके घर वालों से मिलना होता था इसी रिवाज के मुताबिक दाई हलीमा भी 6 महीने के बाद पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को उनकी मां से मिलाने के लिए मक्का पहुंची उनके साथ उनका शोहर हारिश और उनका एक छोटा बच्चा भी था जो उनकी गोद में था वो बच्चा भूख से रो रहा था क्योंकि हलीमा बहुत कमजोर थी और खाने पीने की कमी भी थी इसी वजह से दाई हलीमा दूध नहीं पीला पा रही थी लेकिन जैसे ही उन्होंने अल्लाह के पैगंबर हजरत

मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को अपनी गोद में उठाया और उनको दूध पिलाना शुरू किया तो पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने खूब शेर होकर दूध पिया और आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम के दूध पी लेने के बाद दाई हलीमा ने अपने मासूम से बच्चे को भी खूब दूध पिलाया ये देख कर हलीमा परेशान हो गई की ये क्या मामला हुआ वो जब मक्का आ रही थी तो उनके पास दूध नहीं था मगर जब से ये बच्चा उनकी गोद में आया है तब से अल्लाह की तरफ से खास रहमतों का आना शुरू हो गया है दोस्तों उसके बाद दाई हलीमा अपने शौहर हारिश और अपने बच्चे और पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु

 ताला अलेही वसल्लम के साथ एक दुबली पतली सी ऊंटनी पर सवार हो गई वो ऊंटनी जब बनी साद से निकल कर मक्का की तरफ आई थी तो वह बहुत ही सुस्ती से चलती हुई मक्का पहुंची थी क्योंकि वह बहुत कमजोर हो चुकी थी क्योंकि खुद जब दाई हलीमा गरीब घराने से थी उनके पास कोई खाने के लिए सही से नहीं था तो उनकी ऊंटनी को भी वह ठीक से नहीं पाल पा रही थी तो इसीलिए उनकी ऊंटनी बहुत ज्यादा कमजोर हो चुकी थी लेकिन अब मामला यह हुआ की दाई हलीमा की ऊंटनी सबसे आगे चल रही थी दाई हलीमा की सहेलियों ने अपनी आंखों से देखा की दाई हलीमा की यह वही ऊंटनी थी जो मक्का में बड़ी सुस्ती से आई थी अब उसी ऊंटनी को आखिर क्या हो गया की वो बड़ी रफ्तार से चल रही थी दोस्तों यह नजारा देख कर दाई हलीमा की सहेलियां कहने लगी हलीमा हम पर रहम करो धीरे चलो क्या यह वही ऊंटनी है जिस पर तुम मक्का गईं थी तो यह सुनकर दाइ हलीमा कहने लगी की जब से यह बच्चा मेरी गोद में आया है तब से मालूम नहीं अजीब अजीब से वाक्य मेरे साथ होने लगे हैं दोस्तों उसके बाद दाई हलीमा की जिंदगी में रहमतों और बरकतों का सिलसिला चलता रहा और ऐसे करते-करते दो साल पूरे होने लग गए यानी की बच्चे की परवरिश का जिम्मा पूरा होने को आ गया जो एग्रीमेंट हुआ था वह पूरा हो रहा था खैरो बरकतों का सिलसिला

दाई हलीमा ने इन 2 सालों में अपनी जिंदगी में खूब देखा इसी वजह से उनका दिल नहीं चा रहा था की वो उस नूरानी बच्चे को वापस अपने घर वालों को सोप दे मगर दस्तूर के मुताबिक 2 साल के बाद उसको वापस सौंपना ही था इसीलिए 2 साल के बाद दाई हलीमा पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वल्लम को अपने साथ लेकर मक्का की तरफ निकल पड़ी जब वो मक्का में पहुंची तो हजरत आमिना से मुखातिब होने लगी की आप का बच्चा बड़ा ही बरकतों रहमतों वाला बच्चा है जब से ये बच्चा मेरी गोद में आया है तब से मेरी तो जिंदगी ही बादल गई है मेरी जिंदगी में बरकत और रहमतों का दोर शुरू हो गया है इसीलिए मेरी

आपसे गुजारिश है की आप थोड़े दिन इस बच्चे को मेरे पास रहने दें मैं थोड़े दिन और परवरिश करना चाहती हूं तो ये सुनकर हजरत आमिना ने पहले तो इनकार कर दिया मगर दाई हलीमा के बार-बार इसरार करने पर हजरत आमिना तैयार हो गई और कहने लगी की थोड़े दिन अपने पास और रख लो फिर वापस आकर मुझे दे जाना इस तरह से दाई हलीमा आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को वापस अपने साथ ले गई दोस्तों ऐसा करते-करते पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की उम्र मुबारक 4 साल की हो गई जब आपकी उम्र मुबारक 4 साल की हुई तो एक दिन आप दाई हलीमा के घर के बाहर कुछ बच्चों के साथ खेल रहे थे उनमें

हलीमा सादिया का एक बेटा जो पैगंबर हजरत मोहम्मद का दूध शरीर के भाई भी था वह सब खेल रहे थे की अचानक आप ज़मीन पर गिर गए और आपके चेहरे और जिस्म का रंग पुरी तरह से बादल गया दोस्तों तारीखे किताबों में है की हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम पहली बार पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम से मिलने आए थे जैसे ही हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम आपके पास आए तो आपको जमीन पर लिटा कर आपके सीने को चाक कर दिया यानी की आपके सीने को खोल दिया और आपके दिल को बाहर निकाल लिया उसके बाद आपके दिल को ज़म ज़म के पानी से धोया और आपके दिल पर एक कले रंग का छोटा सा लोथड़ा था उसको हटा दिया और ये कहा की आज से शैतान के हिस्से को दूर कर दिया और उसके बाद आपके दिल को वापस आपके सीने में रख दिया दोस्तों इधर ये देख कर आपके साथ खेल रहे बच्चे घबरा गए ये आपको क्या हो गया है आपका चेहरे का रंग इतना पीला क्यों पदल गया है इसीलिए वो दौड़े दौड़े दाई हलीमा के पास पहुंच गए और कहने लगे की मोहम्मद का किसी ने कत्ल कर दिया है तो यह सुनकर दाई हलीमा बहुत घबरा गई और परेशान हो उठी और भगति हुई सोचने लगी की मुझे दो साल के बाद इस बच्चे को अपनी मां को दे देना चाहिए था अब इसकी मां को मैं क्या मुंह दिखाऊंगी यह सोचते हुए दाई हलीमा भगति हुई आप सल्लल्लाहु ताला अलेही

 वसल्लम तक पहुंची तो हलीमा ने देखा की आप के जिसम का रंग बदला हुआ है मगर थोड़ी देर के बाद आपको होश आ गया ये देख कर हलीमा की जान में जान आई और कहनें लगी अब इसको और नहीं रखूंगी अपने पास उसके बाद दाई हलीमा मक्का पहुंची और पैगंबर मोहम्मद को हजरत आमिना के हवाले कर दिया दोस्तों उसके बाद 4 साल की उम्र के बाद आप अपनी मां हजरत आमिना के पास रहने लगे दोस्तों पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की उम्र मुबारक जब चार साल की हुई तो आप मक्का में वापस आ गए और उसके बाद आप अपनी वालिदा हजरत आमिना के पास रहने लगे उसके बाद जिंदगी के दिन बित्ते चले गए सन 575 या 

 576 ईस्वी में जब आपकी उम्र पांच छह साल के बीच हुई तब आप अपनी मां हजरत आमिना के साथ और अपने दादा अब्दुल मुतल्लिब के साथ मदीना की तरफ निकले मदीना में आपके लिए दो खास बातें थी एक तो ये की मदीना में आपके वालिद हजरत अब्दुल्लाह की कब्र मुबारक थी और दूसरी बात ये की मदीना में आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब का ननिहाल भी था दोस्तों उस जमाने में सफर एक महीने या डेड़ डेड़ महीने का हुआ करता था इसीलिए आपका यह सफर भी तकरीबन महीने भर का था एक महीने के 

बाद जब आप पलट कर वापस मक्का की तरफ आ रहे थे तो आपकी जिंदगी में जो वाक्य पेश आया जिसको देख कर आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब 

भी रोने लगे अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को अपने बचपन की उम्र में ही आपको दूसरा बड़ा झटका लगा और अल्लाह ने आपको एक और आज़माइश में दाल दिया दोस्तों हुआ यह की आप जब एक महीने के बाद मदीना से वापस मक्का आ रहे थे तो रास्ते में ही आपकी वालीदा हजरत आमिना की तबीयत बिगड़ गई और वो बुरी तरह से बीमार पड़ गई और उसके बाद उनका इंतकाल हो गया मक्का और मदीना के बीच अल अबवा नाम की एक जगह है वहीं पर हजरत आमिना को दफन किया गया और इस तरह से आप 6 साल की उम्र में ही यतीम हो गए आपकी इस हालात को देखकर आप के दादा अब्दुल मुतल्लिब बहुत परेशान हुए और

वो रोने लगे एक तो यह की आपकी पैदाइश के कुछ दिन पहले आपके वालिद हजरत अब्दुल्लाह का इंतकाल हो गया था और अब दूसरा झटका यह लगा की आप की उम्र अभी 6 साल की ही थी की आप की वालिदा का भी इंतकाल हो गया यह देख कर आप के दादा अब्दुल मुतल्लिब को बहुत दुख हुआ मगर वो भी क्या करते एक दिन तो सब को मरना है उसके बाद आप के दादा अब्दुल मुतल्लिब ने आपको अपनी गोद में उठाया और मक्का की ओर चल पड़े इस फिक्र के साथ इस सोच के साथ भी आखिर इस मासूम से बच्चे के साथ ऐसा क्यों हो रहा है दोस्तों 

आप जरा सोच कर देखिए उन बच्चों पर क्या बितती होगी जो बचपन

में ही यतीम हो जाते हैं जिनके वालिद और वालिदा का इंतकाल बचपन में ही हो जाता है उसके बाद ऐसे बच्चों को लोग धिक्कार भारी नजरों से देखते हैं फिर ऐसे बच्चों के साथ अच्छा बर्ताव भी नहीं किया जाता मगर आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम के साथ अल्लाह की मदद थी जैसा की अल्लाह ने खुद कुरान-ए-पाक में इरशाद फरमाया है की आपकी यतीम होने पर अल्लाह की मदद आप के साथ थी इसी वजह से आपके साथ अच्छा मामला पेश आया और अल्लाह ने आपको सहारा दिया दोस्तों उसके बाद आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब आपको गम के साथ लेकर मक्का में पहुंचे आपके घर के अंदर गम का माहौल था आबू तालिब जो आपके चाचा वह आपको इस हालात में देख कर रोने लगे आबू तालिब आपको बहुत चाहते थे और अब्दुल मुतल्लिब भी अपने बेटों से सबसे ज्यादा और अपने पोतों में सबसे ज्यादा पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को चाहते थे  दोस्तों हम आपको बता दें की अब्दुल मुतल्लिब वो शख्स थे जो कुश कबीले के बहुत बड़े सरदार थे उनकी लोग सबसे ज्यादा इज़्ज़त किया करते थे काबा की छांव में उनके लिए एक खास फर्श बिछाया जाता जिस पर सिर्फ वो अकेले बैठते थे किसी दूसरे को उस पर बैठने की इजाज़त नहीं होती थी अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम अभी छोटे थे खेलते खेलते वहां पर आ जया करते थे और आकर उस पर बैठ जाया करते थे और आपके दादा के साथी  आगे आते ताकि उनको उठाकर वहां से अलग बिठा दिया जाए लेकिन आपके दादा उनको रोकते थे और कहते थे की यह मेरा पोता है और उसे बैठने दो फिर आपके दादा आपके सर पर और आपकी पीठ पर हाथ फेर दिया करते थे और आपको अपने पास बिठा लेते थे दोस्तों कहनें का मतलब यह 

है की आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब के दिल में आपके लिए मोहब्बत कूट-कूट कर भारी हुई थी आपकी वह हर ख्वाहिश का ख्याल रखते थे आपकी हर जरूर को वो पूरा किया करते थे आपको किसी भी तरहा की कोई तकलीफ नहीं होने देते थे वह हमेशा

आपको अपने साथ रखते अपने साथ में घूमाते फिराते और हमेशा आपको खुश रखते दोस्तों ऐसा करते दिन बीत्ते चले गए अब आपकी उम्र मुबारक 8 साल की हो गई मगर सोचिए अल्लाह के नबी ने कैसी कैसी आजमाइशों से गुर्जर कर अपनी जिंदगी का सफर पूरा किया अब आपकी उम्र मुबारक 8 साल 2 महीने और 10 दिन की हुई तो एक दिन अचानक आपके दादा अब्दुल मुतल्लिब का भी इंतकाल हो गया मरते वक्त आपके दादा ने आपकी परवरिश का ज़िम्मा आबू तालिब को सोप दिया आबू तालिब आपके सगे चाचा थे दोस्तों जरा सोचिए उस बच्चे पर क्या गुजराती होगी जिसके बचपन में ना तो मां का साथ होता है और ना ही बाप

 का साथ एक दादा का सहारा होता है वो भी चला जाता है उसके बाद आपकी परवरिश का ज़िम्मा आपके चाचा आबू तालिब उठाते हैं दोस्तों उसके बाद आबू तालिब ने आपको सहारा दिया आपकी हर तरह से हिफ़ाज़त की आपकी दुश्मनों से तलवार से हर तरह से आपको महफूज रखा और आखरी सांस तक आपकी मदद करते रहे हालांकि आबू तालिब पैसे वाले नहीं थे फिर भी आपको किसी भी बात की कमी महसूस नहीं होने दी आप जिस भी चीज की ख्वाहिश करते थे आप वह पुरी कर देते थे प्यारे दोस्तों उसके बाद दिन बीत्ते चले गए तो आप पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को अपने साथ लेकर जाते

क्योंकि उस जमाने में सफर बहुत लंबा हुआ करता था एक डेढ़ महीने का सफर होता था और आबू तालिब नही चाहते थे की यह मासूम सा बच्चा ना वालिद ना वालिदा का सहारा है ना कोई दादा का सहारा है उसको किसी और के भरोसे नहीं छोड़कर जाना चाहिए तो दोस्तों एक बार आबू तालिब अपने काफिले के साथ मुल्के शाम की तरफ तिजारत के लिए रावना हुए याद रखें पहले अरब में जो 

लोग थे खास करके कुश कबीले के लोगों का इंपोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस था यानी की वह एक जगह से समान खरीदने और दूसरी जगह पर ले जाकर उसको बेच देते इस तरह से वह लोग समान की खरीद फरोख्त किया करते थे इसी कम के सिलसिले में आबू तालिब अपने काफिले के साथ मुल्के 

शाम की तरफ निकले साथ में आपने पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को ले लिया और आपको एक ऊंटनी पर सवार कर दिया आबू तालिब का जब ये काफिला मुल्के शाम के बॉर्डर पर पहुंचा तो उनको रात वहीं पर हो चुकी थी इसीलिए उन्होंने वहीं पर अपना पड़ाव डाल लिया ता कि वह वहीं पर रात गुज़ार सकें और अपनी थकान को दूर कर सकें दोस्तों हम आपको बता दें की उस 

जमाने में राहिब हुआ करते थे जो एक जगह से दूसरी जगह पैदल जाया करते थे उस जमाने में एक क्रिश्चियन राहिब था जो लोगों की रेहनुमाई करता था वह कभी अपने घर से बाहर नहीं निकलता था यानी की वह हमेशा अपने घर के अंदर ही रहे ता था जब उसको

कहीं जाना होता तभी वह बाहर निकलता लेकिन जब उसको मालूम चला की उनके सामने किसी ने पड़ाव डाला है तो वो दौड़ता हुआ उनके पास आया और पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को ले लिया और आबू तालिब से केहने लगा की ये बच्चा सारी दुनिया का सरदार बनकर आया है उसकी यह सारी बात सुनकर आबू तालिब हैरान हुए और पूछने लगे की तुम्हें यह कैसे पता तुमको किसने बताया है की यह बच्चा सारी दुनिया का सरदार बनकर आया है तो उस राहिब ने कहा की जब तुम उस घाटी से इधर इस घाटी में आ चुके थे तो इस घाटी में ऐसा कोई दरख़्त या पत्थर नहीं था जो इस बच्चे को देख कर सजदा ना किया हो और

 पत्थर और दरख़्त सिर्फ उन्हीं लोगों को सजदा करते हैं जिसको अल्लाह अपना पैगंबर बनाकर भेजता है उसके बाद वो कहने लगा तुम इस बच्चे को मुल्क के शाम में मत लेकर जाना क्योंकि आगे यहूदियों से इनको खतरा है कहीं वो इनका कत्ल ना कर दे और मैं इस बच्चे को अच्छी तरह से पहेचानता हूं क्योंकि तोरेत और इंजील में इनके रसूल होने का जिक्र आया है और मैं इस बच्चे को अच्छी तरह से पहेचानता हूं 

इनकी पीठ के नीचे एक सेब की तरह नबूवत की मोहर लगी है उस मोहर से भी मैं इनको पहेचानता हूं लिहाजा तुम इन्हें मुल्के शाम लेकर मत जाना दोस्तों आबू तालिब को उस राहिब की

बातों पर यकीन आ चुका था की वह जो केह रहा है बिल्कुल सच केह रहा है उसके बाद आबू तालिब ने किसी शख्स के ज़ारये से पैगंबर मोहम्मद को वापस मक्का में पहुंच दिया क्योंकि आबू तालिब को अब यह मालूम चल चुका था की यह जो बच्चा है यह कोई मामूली बच्चा नहीं है यह बच्चा खास मर्तबे वाला बच्चा है उसके बाद आबू तालिब आपकी परवरिश और आपकी सुरक्षा के मामले में और ज्यादा चौकन्ना हो गए और आपकी हर तरह से हिफाजत करने लगे उसके बाद दोस्तों जब आप बड़े हुए और समझदार हुए तो पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताल अलेही वसल्लम की सच्चाई और ईमानदारी को देखकर एक बार हजरत ए खदीजा राजी अल्लाहु ताला अंहा ने आपको अपना माल देकर मुल्क के शाम में तिजारत के लिए भेजा और साथ में अपने एक गुलाम को भी लगा दिया अल्लाह के फजलो कर्म से तिजारत में खूब मुनाफा हुआ हजरत ए खदीजा के गुलाम जिनका नाम मसीरा था उन्होंने भी आपकी ईमानदारी और अच्छे अख्लाक की खूब तारीफ की यह देख कर हजरते खदीजा आपकी तरफ माइल हुईं यानी की हजरते खदीजा आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम से बहुत प्रभावित हुई और उसके बाद आपने खुद ही पैगंबर मोहम्मद को निकाह का पैगाम भेजा दोस्तों हम आपको बता दें की हजरते खदीजा राजी अल्लाहु ताला अंहा अरब में एक कामयाब बिज़नेस वूमेन थी और अपनी व्यापार से की हुई कमाई को हजरते खदीजा गरीब अनाथ विधवा

और बीमारों में तक्सीम करती थी उन्होंने अनगिनत गरीब लड़कियों की शादी का खर्च भी उठाया था और इस तरह एक बेहद नेक और सबकी मदद करने वाली औरत के रूप में इस्लाम में ही नहीं बल्कि पुरी दुनिया के इतिहास में उनका बड़ा योगदान रहा है यानी की हजरत ए खदीजा हमेशा गरीब लोगों की अनाज और कपड़ों से मदद किया करती थी हजरते खदीजा मूर्तियों में विश्वास नहीं करती थी और ना ही उनकी पूजा करती थी दोस्तों हम आपको यह भी बता दें की हजरते खतीजा की पैगंबर मोहम्मद के साथ शादी होने से पहले दो शादियां हो चुकी थी और उनके पहले दोनों शोहरो से उन्हें बच्चे भी थे लेकिन उनके

जो शोहर थे वह दोनों भी इंतकाल कर चुके

थे इन्होंने अपना पहला निकाह आबू हाला से किया था जींससे इनको दो बेटियां हुई थी मगर उसके बाद आबू हाला यानी की इनके पहले शोहर की मौत हो गई और उसके बाद हज़रते खदीजा ने दूसरी शादी अतीके इब्ने ज़ेद के साथ की जिसें इनको एक बेटी हुई मगर ये भी थोड़े दोनों के बाद इस दुनिया से चल बसे और ये फिर से विधवा हो गई उसके बाद अरब के बड़े-बड़े ताजदारों ने सरदारों ने खदीजा के साथ शादी की पेशकश की मगर हज़रते खदीजा राजी ना हुई यहां तक की अल्लाह ने आपको पैगंबर मोहम्मद की तरफ माइल कर दिया दोस्तों उसके बाद हजरते खदीजा ने पैगंबर

हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की ईमानदारी और तिजारती सफर को देखकर तीसरा निकाह का पैगाम आपने खुद ही अपनी एक खास सहेली जिसका नाम नफीसा था उसके जारी आपने पैगंबर मोहम्मद के पास निकाह का पैगाम भेजा तो पैगाम सुनकर पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने यह केहकर इनकार कर दिया की वह इसके बारेमें सबसे पहले अपने चाचा आबू तालिब और अपनी चाचा से बात करेंगे उसके बाद में ही वो इसके बारेमें आपको बताएंगे दोस्तों उसके बाद पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने इस पैगाम के बारे में अपने चाचा आबू तालिब से बात की यानी की उनको इस

पैगाम के बारे में बताया तो ये सुनकर आपके चाचा आबू तालिब बहुत खुश हुए और निकाह करवाने के लिए राजी हो गए और आपको इजाज़त दे दी आपके चाचा हजरत ए हमजा ने खदीजा के चाचा उमर बिन साउद से रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम के वली यानी की बड़े होने की हैसियत से बातचीत की और 20 उटनी मैहर यानी के निकाह के वक्त बीबी को दी जान वाली जो रकम आपकी हैसियत में हूं ये देखकर आपके चाचा आबू तालीब ने आपका निकाह पढ़ा दिया दोस्तों उसके बाद हज़रते खदीजा और पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम का निकाह का ख़ुत्बा आपके चाचा आबू तालिब ने पड़ाया उसमें

अल्हम्दु सना सुनाइ गई उसके बाद कबूल नाम हुआ और मैहर बयान किया गया मैहर में 20 ऊंटनी लिखी गई दोस्तों या मूल्कए शाम की वापसी के 2 महीने के बाद की बात है उस वक्त आपकी उम्र 25 साल थी और हज़रते खदीजा की उम्र 40 साल थी हजरते खदीजा आपकी पहली बीबी थी हज़रते खदीजा के जीते जी आपने किसी और औरत के साथ शादी नहीं की आपकी तमाम औलादे भी इन्हीं से हुई है सिर्फ हजरत इब्राहिम हजरत मारिया से पैदा हुए थे दोस्तों पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम और हज़रते खदीजा की औलादे यह है यानी की आपके औलादे के नाम यह है पहले कासिम फिर जैनब फिर रुकैया फिर उम्मे कुलसुम फिर फातिमा और फिर अब्दुल्ला आपके तमाम लड़के बचपन में ही इंतकाल कर गए थे अलबत्ता

आदि बेटियों ने आदि नबूवत को पाया इस्लाम लाईं

और हिजरत भी की आप की सब बेटियां आपकी जिंदगी में ही इंतकाल कर गई सिर्फ हजरत फातिमा रजि अल्लाहु ताला अन्हा आपकी इस दुनिया से पर्दा फार्मा जान के 6 महीने के बाद इस दुनिया से रुखसत हुई प्यारे दोस्तों जैसा की आपको पता है की शादी के वक्त प्यारे नबी सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की उम्र मुबारक 25 थी और हजरते खदीजा की उम्र 40 थी हजरते खदीजा अरब की अमीर तरीन खातून और ताज़िरीन औरत थी आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम पर जब पहली आयत नाजिल हुई तो रसूलल्लाह सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने सबसे पहले हज़रते खदीजा को बताया इस्लाम

काबुल करने वालों में हजरत ए खदीजा पहली खातून थीं पहली औरत है इस्लाम को फैलाने में ना सिर्फ अख़िलाक़ी बल्कि माली तोर पर भी आपने बहुत ज्यादा आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की मदद की दोस्तों पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम हजरते खदीजा रजी अल्लाह ताला अंहा से बहुत मोहब्बत किया करते थे और उनके होते हुए जीते जी आपने दूसरी शादी नहीं की थी और अरब का यह रिवाज था की वह 10 शादियां करते थे 10-10-11 शादियां तक उस वक्त अरबों में हुआ करती थी लेकिन प्यारे नबी सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने जब तक हजरते खदीजा जिंदा रही तब तक उन्होंने दूसरी शादी नहीं

की हजरते खदीजा और पैगंबर मोहम्मद का साथ तकरीबन 25 साल तक रहा अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया है की खदीजा दुनिया की बेहतरीन औरतों में से है आप हजरते खदीजा की वफात के बाद भी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताल अलेही वसल्लम अक्सर आपको याद किया करते थे और आपकी सहेलियां को हदिया भिजवाते रहते थे दोस्तों पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताल अलेही वसल्लम की तमाम औलादे यानी की आपके 6 बच्चे हज़रते खदीजा से ही है सिवाय हजरत इब्राहिम रज़ी अल्लाहु ताला अंहा और खदीजा रज़ी अल्लाहु ताला अंहा की कबरें मुबारक मक्का में है खदीजा रज़ी अल्लाहु ताला अंहा और आपके चाचा आबू तालिब का इंतकाल हुआ था उस साल को

आपने गम का साल कार दिया प्यारे दोस्तों ऐलान ए नबूवत से पहले अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम कुछ खाने पीने का समान अपने साथ लेकर ग़ारे हीरा की पहाड़ी पर चले जया करते और वहां पर जाकर वो अकेले बैठते और अल्लाह की इबादत कर ते यानी की अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते थे यह सिलसिला काफी दोनों तक ऐसे ही चलता रहा यानी की काफी दिनों तक आप इसी तरह से ग़ारे हीरा की पहाड़ी पर जाकर अल्लाह की इबादत करते रहे एक मर्तबा अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ग़ारे हिरा की पहाड़ी पर अल्लाह की

इबादत में मशगूल थे इतने में आपके पास में हजरत जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम अपनी असली शक्ल सूरत में आपके पास तशरीफ़ लाए यानी की अचानक हजरत जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम आपके सामने नाज़िल हो गए हम आपको बता दें हजरत जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम फरिश्तों के सरदार है और हजरत जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम की ताकत इतनी है की अगर जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम अपना एक पर फैला दें तो मशरिक से लेकर मगरिब तक इस पुरी दुनिया को छुपा सकते हैं यानी की इतना बड़ा हजरत जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम का एक पर है और हजरते इब्राहिम अल्लाहिसस्लाम के इस तरह के 70 हजार पर है अब आप सोचिए की हजरते जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम कितने ज्यादा ताकतवर होंगे और कितने बड़े होंगे इसके अलावा हजरत ए

जिब्राइल की परवाज का आलम ये है यानी की इनकी स्पीड इतनी ज्यादा है की यह पलक झपकते ही सिद्रा से जमीन पर आ जाते हैं और पलक झपकते ही जमीन से वापस सिद्र पर पहुंच जाते हैं यह हजरते जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम की ताकत का आलम है अगर हजरते जिब्राइल अल्लाहिसस्लाम चाहे तो इस पुरी जमीन को उठाकर पलट सकते हैं

कोमे लूत को इसी तरह से हजरते जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने पलटा था यह हजरते जिब्राइल अलैहिस्सलाम की शान है जो अल्लाह के एक फरिश्ते हैं जिब्राइल अलैहिस्सलाम के मुकतडी भी है जिनका नाम इज़रायल अलैहिस्सलाम है जिनको मलकुल मौत भी कहा जाता है वो हर इंसान के घर में आते हैं और जिस इंसान को यह एक बार दिख जाते हैं तो फिर वो दोबारा किसी और इंसान को देख नहीं पता है यानी की फिर वो इंसान किसी और को देखने से पहले हमेशा हमेशा के लिए महरूम र जाता है हजरत इज़रायल की ताकत इतनी

ज्यादा है की अगर इजरायल किसी पर अपनी उंगली रख दे तो उस इंसान की मौत हो जाति है यानी की वह मर जाता है अब आप सोचिए की जब हजरते इजरायल की ताकत यह है तो फिर अल्लाह के फरिश्ते हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम की ताकत कलाम की होगी तो दोस्तों यही हजरते जिब्राइल अपनी असल शक्ल सूरत में अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताल अलेही वसल्लम के सामने हाजिर हो गए और कहने लगे पढ़ो इकरा ये सुनकर आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया की मुझे पढ़ना नहीं आता हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने दोबारा कहा पढ़ो इकरा आप सल्लल्लाहु ताल अलेही वसल्लम ने फिर कहा की

मुझे पढ़ना नहीं आता हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने तीसरी मर्तबा कहा पढ़ो इकरा तो आपने फिर कहा की मुझे पढ़ना नहीं आता उसके बाद हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के प्यार नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को अपने सीने से लगाया और सीने से इस तरह से लगाया की हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने हुजूर पाक सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की बगल में अपने दोनों हाथ डाले यानी की अल्लाह के नबी के दोनों हाथ बाहर की तरफ कर दिए और फिर जिब्राइल ने प्यारे नबी को अपने सीने से लगाया और फिर जोर से दबा दिया यानी की बहुत जोर से दबा दिया हदीस शरीफ में आता

है की अल्लाह के प्यार नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया की उस वक्त हजरत जिब्राइल ने मुझे इतनी जोर से दबाया था की मेरी जान निकल जाती मगर जिब्राइल ने मुझे जोर से दबाकर छोड़ दिया और फिर फरमाया की पढ़ो अपने रब के नाम के साथ जिसने आपको और तमाम दुनिया को पैदा फरमाया है पैदा किया है इंसान को जमीन व खून के जेम हुए एक लोथड़े से पढ़ो हाल ये है की तुम्हारा रब बड़ा ही रहेम करने वाला है फिर अल्लाह के प्यार नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम पढ़ने लगे और फिर आप बहुत घबराए हुए ग़ारे हीरा

की पहाड़ी से उतर गए और अपने घर आ गए यानी की वो वाक्य होने के बाद में अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम घबराए हुए अपने घर तशरीफ़ ले आए उस वक्त आपका बदन कांप रहा था जिस तरह से इंसान का बदन कभी सर्दी में कांपते है यानी की उस वक्त आप बहुत ही ज्यादा खौफ की हालात में आ गए थे आप सल्लल्लाहु ताल अलेही वसल्लम बहुत ही ज्यादा घबराए हुए अपने घर आए और आपने अपनी बीबी हजरत ए खदिजा रज़ी अल्लाहु ताला अंहा से फरमाए चादर लओ और मुझको चादर ओढ़ा दो हजरत ए खदिजा चादर लेकर आई और फिर आप वह चादर ओड़ कर सो गए उसके कुछ देर बाद में

आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम के ऊपर से खौफ के असरात काम हुए तो आपने अपनी बीबी हजरते खदिजा रज़ी अल्लाहू ताला अंहा को ये सब वाक्य बयान किया यानी की ग़ारे हीरा की पहाड़ी पर जो भी आपके साथ में हुआ था वो सारा वाक्य आपने हजरत ए खदीजा के सामने बयान कर दिया तो ये वाक्य सुनकर हजरत ए खदीजा ने फरमाया की आपके ऊपर ये कोई शैतानी काम नहीं हो सकता है क्योंकि आपने तो हमेशा गरीबों की मदद की है आपने तो हमेशा वेवाह को सहारा दिया है आप तो हमेशा यतीमों के सहारे बने हो आपने हमेशा बेसहारा लोगों की मदद की है इसीलिए आपके साथ में अल्लाह ताला कुछ कभी गलत नहीं होने दे सकता

आपको अल्लाह कभी इस तरह से ज़या और बर्बाद नहीं करेगा दोस्तों उसके बाद में हजरते खदीजा अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को साथ में लेकर अपने चाचा ज़ात भाई हज़रत ब्राक इब्ने नोफिल के पास पहुंची जो कि उस वक्त यहूदियों के एक बहुत बड़े आलिम हुआ करते थे यह असल में पहले मुशरिक थे यानी की बुतपरस्त थे लेकिन यह बहुत ही ज्यादा तालीमे याफ्ता थे इसीलिए बाद में इन्होंने इसाई धर्म को काबुल कर लिया था फिर इन्होंने तोरात और इनजील को हिफज़ भी कर लिया था यानी की ये उसे वक्त तोरात के बहुत बड़े अलीम थे इसीलिए हजरत ए खदीजा अल्लाह के प्यारे नबी हजरत मोहम्मद

सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम को साथ में लेकर अपने इन्हीं चाचा ज़ात भाई के पास पहुंची और जाकर सारा वाक्य बयान कर दिया हज़रत ब्राक इब्ने नोफिल के उसे वक्त अपने बुढ़ापे की वजह से दिनाई चली गई थी यानी की उस वक्त वो देख नहीं पा रहे थे जब उन्होंने अल्लाह के नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम के हालात सुने तो पूछने लगे की आपको क्या हुआ तो आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया की मैं गा़रे हीरा की पहाड़ी पर अल्लाह की इबादत में मशगूल था इतने में मेरे पास में इस तरह से एक बहुत बड़ा शख्स अचानक मेरे सामने आ गया तो फिर वह कहनें लगा की पढ़ो जब मैंने नहीं

पढ़ा तो उसने फिर अपने सीने से लगाकर मुझको बहुत जोर से दबाया फिर मैंने पढ़ना शुरू कर दिया अब दोस्तों जैसा की हमने आपको पहले बताया की हज़रत ब्राक इब्ने नोफिल तोरात और इंजील के एक बहुत बड़े अलीम थे इसीलिए वो अल्लाह के आखिरी नबी के आने की तमाम निशानियों के बारे में अच्छी तरह से जानते थे इसीलिए वो ये सुनकर कहने लगे की अल्लाह की कसम जो भी आपके पास आया था वो वही अल्लाह का फरिश्ता था जो हजरत ए मूसा और हजरते ईसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल होता था यानी की जो फरिश्ता हजरते मूसा और हजरते ईसा के पास में आता था वही फरिश्ता आपके पास में आया था और उन करीब है की अब आपकी कॉम आपको

आपके इलाके से आपको अपने शहर से बाहर निकाल देगी क्योंकि आज तक जिसने भी हक का आलम बुलंद किया है जितने भी आज तक नबी इस दुनिया में आए हैं उन सब को इसी तरह उसे सज़ा दी गई है क्योंकि हजरत ब्राक इब्ने नोफिल तोरात और इंजील के बहुत बड़े अलीम थे इसीलिए वो अल्लाह के आखिरी नबी के आने की तमाम निशानियां से अच्छी तरह से वाकिफ थे इसीलिए उन्होंने ये सारी बातें आपको बता दी और उन्होंने इससे पहले हजरत ए खदीजा से भी ये सुन चुके थे की वो पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु ताला आलेही वसल्लम से निकाह भी इसलिए किया की आप सच्चे हैं आप ईमानदार हैं ये सारी बातें बता कर

फिर हजरत ब्राक इब्ने नोफिल फरमाने लगे अगर मैं उसे वक्त तक जिंदा रहा तो मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगा उसके बाद में यह सुनकर वहीं पर हजरत ए खदीजा ने आपका पहले कलमा पढ़ लिया यानी की हजरते खदीजा पहली औरत थी जो आप पर इमान ले आई और दूसरे यह हजरत ब्राक इब्ने नोफिल थे जिसने आप सल्लल्लाहु ताला अलेही वसल्लम की तस्दीक की यानी की आपके बारे में बताया यानी की दूसरा कलम इन्होंने पढ़ा




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